गरासिया जनजाति के रोचक तथ्य

 वस्त्र 

रहन-सहन तथा वेश-भूषा की दृष्टि से गरासिया जनजाति की अपनी एक अलग पहचान है। गरासिया पुरुष धोती कमीज पहनते हैं और सिर पर तौलिया बाँधते हैं। गरासिया स्रियाँ गहरे रंग और तड़क - भड़क वाले रंगीन घाघरा व ओढ़नी पहनती हैं। वे अपने तन को पूर्ण रूप से ढंकती हैं।

गरासिया जनजाति

समाज 

आवास- भीलों के एवं इनके घरों, जीने के तरीकों, भाषा, तीर कमान आदि में कई समानताएं पाई जाती है।इनके घर 'घेर' कहलाते है। इनके गाँव बिखरे हुए होते हैं। ये गाँव पहाड़ियों पर दूर दूर छितरे हुए पाए जाते हैं। गरासियों के गाँव 'फालिया' कहलाते है। येलोग अपने घर प्रायः पहाड़ों की ढलान बताते हैं। एक गाँव में प्रायः एक ही गोत्र के लोग रहते हैं। इनकी भाषा में गुजराती, भीली, मेवाड़ी व मारवाडी का मिश्रण है।

गरासिया जनजाति

विवाह

इनमें तीन प्रकार के विवाह प्रचलित हैं- (i) मौर बाँधिया- इस प्रकार के विवाह में फेरे आदि संस्कार होते हैं। (ii) पहरावना विवाह- इसमें नाममात्र के फेरे होते हैं। (iii) ताणना विवाह- इसमें वर पक्ष कन्या पक्ष को केवल कन्या के मूल्य के रूप में वैवाहिक भेंट देता है। (iv) विधवा विवाह- इनमें इसका भी प्रचलन हैं।

गरासिया जनजाति

समाज एवं परिवार

इनका समाज मुख्यतः एकाकी परिवारों में विभक्तहोता है। पिता परिवार का मुखिया होता है। समाज में गोद लेने की परंपरा भीप्रचलित है। इनके समाज में जाति पंचायत का विशेष महत्व है। ग्राम व भाखरस्तर पर जाति पंचायत होती है। पंचायत का मुखिया"पटेल या सहलोत" कहलाताहै। पंचायत द्वारा आर्थिक व शारीरिक दोनों प्रकार के दंड दिए जाते हैं।

गरासियों के मेले

इनके प्रतिवर्ष कई स्थानीय व संभागीय मेले भरते हैं।गरासियों का प्रमुख मेला 'गौर का मेला या अन्जारी का मेला' है जो सिरोही जिले में में वैशाख पूर्णिमा को लगता है।इनके बड़े मेले "मनखारो मेलो" कहलाते हैं।गुजरात के चौपानी क्षेत्र का मनखारो मेलो प्रसिद्ध है। युवाओं के लिए इन मेलों का बड़ा महत्व है। गरासिया युवक मेलों में अपने जीवन साथी का चयन भी करते हैं।


गरासियों के नृत्य

वालर, गरबा, गैर, कुदा, लूर, मोरिया व गौर गरासियों के प्रमुख नृत्य हैं। ये नृत्य करते समय लय और आनन्द में डूब जाते हैं।

गरासियों में गोदना परंपरा

भीलों की तरह इनमें भी गोदना गुदवाने की परंपरा है। महिलाएँ प्रायः ललाट व ठोडी पर गोदने गुदवाती है।

 निवास क्षेत्र 

इस जनजाति के लोग मुख्यतः राजस्थान और गुजरात में निवास करते हैं। ये लोग मुख्यतः राजस्थान के पाली, सिरोही और उदयपुर क्षेत्रों से विस्थापित हैं।

राजस्थान के भील सदियो पहले स्थलांतरित करके उत्तर गुजरात अरवल्ली -भिलोडा, मेघरज, साबरकाँठा- विजयनगर, बनासकांठा में निवास कर रहे हैं जो अभी आदिवासी डुंगरी गरासिया नाम से पहेचाने जाते है



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